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કોઈપણ દેશનું લેવલ તે દેશના શિક્ષકોના લેવલથી ઊંચું ન જ હોઈ શકે

' કોઈપણ દેશનું લેવલ તે દેશના શિક્ષકોના લેવલથી ઊંચું ન જ હોઈ શકે.' -આ એક જ વાક્ય શિક્ષકોના મહિમા માટે પુરતું છે.

મહાન નીતિજ્ઞ ચાણક્ય કહે છે : કોઈ શિક્ષક ક્યારેય સામાન્ય હોતો નથી. પ્રલય અને નિર્માણ તેની ગોદમાં આકાર પામે છે.


દરેક મહાન કે મોટા માણસ પાછળ સારા શિક્ષકનો હાથ હોય છે. વ્યક્તિ પોતાના શિક્ષણકાળની સારી કે ખરાબ છાપ ભૂલી શકતો નથી.



શિક્ષક બ્લેકબોર્ડ, ચોક, ડસ્ટર અને પુસ્તકોનો ઉપયોગ કરે છે, પરંતુ તેના વર્ગ ખંડમાં વિશ્વનું ભવિષ્ય સર્જન પામે છે.



શિક્ષક એ જ્ઞાનનું કેન્દ્ર છે. તે જ માણસને બુદ્ધિનું ઘડતર કરી માણસ બનાવે છે. તમીલનાડુના નાનકડા ગામના બ્રાહ્મણ કુંટુંબમાં જન્મેલો એક બાળક. તેને નાનપણથી જ શિક્ષક બનવું હતું. અને તેણે પોતાનું સપનું સાકાર કર્યું. તેઓ શિક્ષક જ નહીં, ભારતના રાષ્ટ્રપતિ પણ બન્યા. આજે પણ તેમની યાદમાં જ ' શિક્ષકદિન ' ઉજવાય છે. એમનું નામ ડો. સર્વપલ્લી રાધાકૃષ્ણન.





બાલમંદિર, પ્રાથમિક, માધ્યમિક, ઉચ્ચતર માધ્યમિક, કોલેજના પ્રોફેસર….વગેરે શિક્ષકોના અનેક પ્રકારો છે.



સાયન્સ, કોમર્સ, કે આર્ટસ દરેક સ્ટ્રીમમાં અભ્યાસ કરી, જે તે સ્ટ્રીમના શિક્ષક બની શકાય છે. PTC , B .ED., M .ED ., કરીને પણ શિક્ષક બની શકાય છે.



જેમ-જેમ દિવસો વીતે તેમ અનુભવી શિક્ષકનું મૂલ્ય વધે છે. વિદ્યાર્થીઓ તેમને વર્ષો સુધી યાદ કરે છે. ને ‘આચાર્ય દેવો ભવ ‘ ની ભાવના સાથે વંદન કરે છે.



આમ તો માણસે આખી જીંદગી કંઈક ને કંઈક શીખતા રહેવાનું છે. તેથી તેણે અનેક ગુરુની મદદ લેવાની થાય જ.



શિક્ષકને વિદ્યાર્થીઓને ભણાવતા સમયે ખૂબ જ ધીરજ રાખવી પડે છે. એકની એક વાત વારંવાર કરાવી પડે છે. રોજ સતત બોલવું પડે છે. ખરેખર શિક્ષક થવું એ પણ એક કસોટી છે.





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1 ટિપ્પણી:

  1. *शिक्षक दिवस 05 सितम्बर 2016*

    *शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर आपको प्रेम और अहोभावपूर्वक सादर प्रणाम |*
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    भारत के दूसरे राष्ट्रपति श्री राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस को भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है ।तमिलनाडु में जन्में श्री कृष्णन जी खुद प्राध्यापक रहे व उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पहली बार उपराष्ट्रपति पद सृजन कर 1952 में उपराष्ट्रपति बनाया गया । 13 मई1962 से 13मई 1967 तक राष्ट्रपति बने ।छात्रों के विषेश आग्रह को स्वीकार कर उन्होंने उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस मनाने की अनुमति दी व तब से(1962से) उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रुप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है ।

    *शिक्षक दिवस के बारे में कुछ खास बातें..*

    �� 1. भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है।
    ��2. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि स्थान में हुआ था जो चेन्नई से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है।
    ��3. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति थे।
    �� 4. राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिये थे।
    �� 5 सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरूरी है।
    �� 6. भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसलिए शिक्षकों को सम्मान देने के लिए अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप मे मनाने की बात कही।

    *��गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः |*
    *गुरुर साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||*

    ⚫यह एक बहुत हि अद्भुद सूत्र हैं , यह सूत्र किसी एक व्यक्ति क अनुदान नहीं हैं बल्कि सदियों के अनुभव का निचोड हैं | सुना तो है लोगो ने इस सूत्र को बहुत बार हैं , इसलिये शायद समझना भी भूल गए हैं | यह भ्रान्ति होती हैं , जिस बात को हम बहुत बार सुन लेते हैं , लगता हैं : समझ गए --- बिना समझे ही |
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    ��गुरु को हमने तीन नाम दिए हैं -- ब्रह्मा , विष्णु और महेश | ब्रह्मा का अर्थ हैं जो बनाये , विष्णु का अर्थ हैं जो संभाले और महेश का अर्थ हैं जो मिटाए | इसलिए सद्गुरु वही हैं जिसके पास ये तीनों प्रकार की कलाएँ हैं | लेकिन हम उन गुरुवों को खोजते हैं जो हमें मिटाए नहीं बल्कि संवारे | मगर जिसे मिटाना नहीं आता वो क्या ख़ाक किसी को संवारेगा ? हम उन गुरुवो के पास जाते हैं , जो हमें सांत्वना दे | सांत्वना यानि संभाले | हमारी मलहम पट्टी करे , हमें इस तरह के विश्वास दे जिससे हमारा भय कम हो जाये , चिंताए कम हो जाये | तो ऐसे लोग सद्गुरु नहीं हैं | सद्गुरु वो हैं जो हमें नया जीवन दें , नया जन्म दें | लेकिन नया जन्म तो तभी संभव हैं जब गुरु हमें पहले मिटाए , तोड़े | एक बहुत ही प्राचीन सूत्र हैं --- " आचार्यो मृत्युः " | वह जो आचार्य हैं , वह जो गुरु हैं वो मृत्यु हैं , जिस किसी ने भी ये सूत्र कहा होगा , उसने जानकार कहा होगा , जी कर कहा होगा | पृथ्वी के किसी भी कोने में किसी ने भी गुरु को मृत्यु नहीं कहा हैं | लेकिन हमारे देश ने गुरु को मृत्यु कहा हैं |

    ��हमने तीन रूप सद्गुरु को दिए | बनाने वाला , सँभालने वाला और मिटाने वाला | वो सिर्फ बनता ही नहीं हैं , वो सिर्फ संभालता ही नहीं हैं और न ही सिर्फ मिटाता हैं | उसके अन्दर तो ये तीनो रूप मौजूद हैं , इसलिए तो सद्गुरु के पास सिर्फ और सिर्फ हिम्मतवाले लोग ही जाते हैं , जिनकी मरने की तैयारी हो , जो मिटने के लिए तैयार होता हैं सिर्फ वही सद्गुरु के पास जाने का हिम्मत कर पाता है ।

    ��सद्गुरु के पास तो मरना भी सीखना होता हैं और जीना भी सीखना होता हैं | और जीते जी मर जाना --- यही ध्यान हैं , यही संन्यास हैं | जीवन जीने की कला हैं -- जैसे कमल के पत्ते , पानी में होते हुवे भी पानी उनपे ठहर तक नहीं पाती |सद्गुरु हमें यही सिखाते हैं , और ये तीन घटनाये सद्गुरु के पास घाट जाये तो चौथी घटना स्वयं हमारे भीतर घटती हैं , इसलिए उस चौथे को भी हमने सद्गुरु के लिए कहा हैं | तीन चरणों के बाद जो अनुभूति हमारे भीतर होगी इन तीन चरणों के माध्यम से , इन तीन द्वारों से होके गुजरने से , इन तीन द्वारो में प्रवेश कर के जो प्रतिमा का मिलन होगा , वह चौथी अवस्था -------
    *" गुरुर्साक्षात् परब्रह्म "* | तब आप जानोगे की आप जिसके पास बैठे थे वे कोई व्यक्ति नहीं था , जिसने संभाला, मारा पीटा , तोडा , जगाया ---- वह तो कोई व्यक्ति था ही नहीं , उसके भीतर तो परमात्मा ही था | और जिस दिन हम लोग अपने सद्गुरु के भीतर परमात्मा को देख लेंगे उस दिन हमें अपने भीतर भी परमात्मा की झलक मिल जाएगी | क्योकि गुरु तो दर्पण हैं उसमे हमें अपनी ही झलक दिखाई पड़ जाएगी |

    *इस लिए , तीन चरण हैं और चौथी मंजिल |

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