मन का बोझ

Baldevpari

एक बार महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये ।

अगले दिन सभी लोग आलूलेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे ।
अब महात्मा बुद्ध ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलूआप सदैव अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें ।
शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा बुद्ध क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा बुद्ध के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे, वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली ।

महात्मा बुद्ध ने कहा: अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली ।
महात्मा बुद्ध ने पूछा – विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ?

शिष्यों ने महात्मा बुद्ध से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया, आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया। सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है…
महात्मा बुद्ध ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था।
जब मात्र सात दिनों में ही आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं। सोचिये कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह… इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो।

यदि आप किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफ़रत और ईर्ष्या मत कीजिये, तभी आपका मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का बना रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते आपका मन और आपकी मानसिकता दोनों बीमार हो जाएँगी। ईर्ष्या करने से दूसरों से पहले खुद को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए स्वयं में परिवर्तन करो। सभी के लिए शुभ भावना, शुभ कामना रखो।
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